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ता वि॒द्वांसा॑ हवामहे वां॒ ता नो॑ वि॒द्वांसा॒ मन्म॑ वोचेतम॒द्य। प्रार्च॒द्दय॑मानो यु॒वाकु॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā vidvāṁsā havāmahe vāṁ tā no vidvāṁsā manma vocetam adya | prārcad dayamāno yuvākuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। वि॒द्वांसा॑। ह॒वा॒म॒हे॒। वा॒म्। ता। नः॒। वि॒द्वांसा॑। मन्म॑। वो॒चे॒त॒म्। अ॒द्य। प्र। आ॒र्च॒त्। दय॑मानः। यु॒वाकुः॑ ॥ १.१२०.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:120» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और उपदेशक विद्वान् क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (विद्वांसा) पूरी विद्या पढ़े उत्तम आप्त अध्यापक तथा उपदेशक विद्वान् (अद्य) इस समय में (नः) हम लोगों के लिये (मन्म) मानने योग्य उत्तम वेदों में कहे हुए ज्ञान का (वोचेतम्) उपदेश करें (ता) उन समस्त विद्या से उत्पन्न हुए प्रश्नों के उत्तर देने और (विद्वांसा) सब उत्तम विद्याओं के जतानेहारे (वाम्) तुम दोनों विद्वानों को हम लोग (हवामहे) स्वीकार करते हैं जो (दयमानः) सबके ऊपर दया करता हुआ (युवाकुः) मनुष्यों को समस्त विद्याओं के साथ संयोग करानेहारा मनुष्य (ता) उन तुम दोनों विद्वानों का (प्र, आर्चत्) सत्कार करे, उसका तुम सत्कार करो ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में जो जिसके लिये सत्य विद्याओं को देवे वह उसको मन, वाणी और शरीर से सेवे और जो कपट से विद्या को छिपावे उसका निरन्तर तिरस्कार करे। ऐसे सब लोग मिल-मिलाके विद्वानों का मान और मूर्खों का अपमान निरन्तर करें, जिससे सत्कार को पाये हुए विद्वान् विद्या के प्रचार करने में अच्छे-अच्छे यत्न करें और अपमान को पाये हुए मूर्ख भी करें ॥ ३ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकौ विद्वांसो किं कुर्य्यातामित्याह ।

अन्वय:

यौ विद्वांसाऽद्य नो मन्म वोचेतं ता विद्वांसा वां वयं हवामहे, यो दयमानो युवाकुर्जनस्ता प्रार्चत्। तं सत्कुर्यातम् ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ सकलविद्याजन्यप्रश्नानुत्तरैः समाधातारौ (विद्वांसा) पूर्णविद्यायुक्तावाप्तावध्यापकोपदेशकौ। अत्राकारादेशः। (हवामहे) आदद्मः (वाम्) युवाम् (ता) तौ (नः) अस्मभ्यम् (विद्वांसा) सर्वशुभविद्याविज्ञापकौ (मन्म) मन्तव्यं वेदोक्तं ज्ञानम् (वोचेतम्) ब्रूतम् (अद्य) अस्मिन् वर्त्तमानसमये (प्र) (आर्चत्) सत्कुर्यात् (दयमानः) सर्वेषामुपरि दयां कुर्वन् (युवाकुः) यो यावयति मिश्रयति संयोजयति सर्वाभिर्विद्याभिः सह जनान् सः ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अस्मिन् संसारे यो यस्मै सत्या विद्याः प्रदद्यात् स तं मनोवाक्कायैः सेवेत। यः कपटेन विद्यां गूहेत तं सततं तिरस्कुर्यात्। एवं सर्वे मिलित्वा विदुषां मानमविदुषामपमानं च सततं कुर्युर्यतः सत्कृता विद्वांसो विद्याप्रचारे प्रयतेरन्नसत्कृता अविद्वांसश्च ॥ ३ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या संसारात जो ज्याच्यासाठी सत्यविद्या देतो त्याने ते मन, वाणी व शरीराने सेवन करावे. जो कपटाने विद्या लपवितो त्याचा निरंतर तिरस्कार करावा. सर्व लोकांनी मिळून विद्वानांना मान द्यावा व मूर्खांचा अपमान करावा. सत्कार झालेल्या विद्वानांनी विद्येचा प्रचार करण्याचा प्रयत्न करावा. तसाच अविद्वानांनी करावा. ॥ ३ ॥